Jan 11, 2013

एक बेहूदा, मूर्खतापूर्ण आलेख!


आज बात करते हैं एक बेहूदा, मूर्खतापूर्ण आलेख की जिसे अभी तक मेरे सहित 16 ब्लॉगरों ने गूगल में और न जाने कितनो ने फेसबुक और ट्यूटर में शेयर किया। एक को छोड़कर इस ब्लॉग पर आये सभी कमेंट बताते हैं कि आलेख बहुत बढ़िया है। एक विद्वान ब्लॉगर डा0 श्याम गुप्त जी ने इस पोस्ट को पढ़कर इसे एक बेहूदा और मूर्खतापूर्ण आलेख कहा। जी हाँ, मैं अनुराग शर्मा जी के ब्लॉग An Indian in Pittsburgh की ताजा पोस्ट इंडिया बनाम भारत बनाम महाभारत की बात कर रहा हूँ। 

इस पोस्ट में अनुराग शर्मा जी ने दिल्ली कांड के बाद आये निराशाजनक वक्तव्यों की पड़ताल करते हुए बेहतरीन ढंग से सारा ठीकरा पश्चिमि सभ्यता पर मढ़ने और अपनी कमियों को नज़र अंदाज करने वालों की अच्छी खबर ली है। वे वहाँ के सुदृढ़ व्यवस्था तंत्र के बारे में बताते हुए लिखते हैं...जो प्राचीन गौरवमय भारतीय संस्कृति हमारे यहाँ मुझे सिर्फ किताबों में मिली वह यहाँ हर ओर बिखरी हुई है। आश्चर्य नहीं कि पश्चिम में स्वतन्त्रता का अर्थ उच्छृंखलता नहीं होता। किसी की आँखें ही बंद हों तो कोई क्या करे?  अपनी बात समाप्त करते हुए वे आगे लिखते हैं...आँख मूंदकर अपनी हर कमी, हर अपराध का दोष अंग्रेजों, पश्चिम को देने वालों ... बख्श दो इस महान देश को! 

इस पोस्ट की मेरे सहित सभी ने खूब प्रशंसा करी और नायाब टिप्पणियों से नवाजा। पोस्ट न पढ़ी हो तो संबंधित लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। मैं यहाँ इस पोस्ट पर आये कुछ बेहतरीन टिप्पणियों की चर्चा करना चाहता हूँ जिसके लिए इस ब्लॉग का निर्माण हुआ है। 

सुज्ञ जी ने लिखा.....

वस्तुतः जिसे पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण कहा जाता है वह उस संस्कृति को बिना समझे उपर उपर से अपनाया गया बेअक्ल नमूना होता है जैसे गंवार, सुधरे होने या दिखने का ढोंग रचता है।

 डा0 दराल ने लिखा....

शासन , अनुशासन और कानून के पालन के बारे में हमें विदेशों से सीखने की ज़रुरत है।  लेकिन यहाँ तो ढोंगी और पाखंडी गुरुओं को ज्यादा पूजा जाता है।

शिल्पा मेहता जी ने लिखा.....

संस्कृति की बातें करने वाले, और पश्चिम को कोसने वाले, न अपनी संस्कृति को जानते हैं, न पश्चिम की संस्कृति को । बस , मन में कीचड भरी है - तो वही उगल कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं ।

सलिल वर्मा जी ने लिखा....

अनुराग जी! जब हमारे यहाँ हिन्दी दिवस के समारोह होते थे तो अधिकतर वक्ता अंग्रेज़ी को गालियाँ देकर, अपना हिन्दी प्रेम दर्शाकर चले जाते थे. जबकि मैं सबसे पहले अंग्रेज़ी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता था, जिस भाषा के विद्वान डॉक्टर बच्चन, फ़िराक और बेढब बनारसी रहे. हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या यही है कि अपनी अकर्मण्यता का ठीकरा किसी के सिर फोड़ दो. और ऐसे में पश्चिमी सभ्यता का मर्सिया पढकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लो. 

एक निर्धन, निर्वस्त्र स्त्री को जिसके फटे कपड़ों से उसका अर्द्ध-नग्न शरीर झाँक रहा होता है, ऐसे दीदे फाडकर देखते हैं लोग कि बस नज़रों से कच्चा चबा जायेंगे. अब उन सभी सुधारक, नेता, धर्मगुरुओं से कोई पूछे कि उस औरत ने कौन से पश्चिमी लिबास पहन रखे थे. बजाय इसके उसके तन पर वस्त्र पहनाएं या अपनी नज़र झुका लें (अगर मदद नहीं कर सकते तो).. मगर पता नहीं किस सभ्यता के अनुकरण में वो उसे घूरे चले जाते हैं. पिछले दिनों हुए बलात्कार की चर्चा जे साथ ही कई घटनाएँ सामने आईं... मगर जिसका ज़िक्र भी किसी ने नहीं किया वो घटनाएं उन सभ्यता के पहरेदारों के सामने लाने की आवश्यकता है.. 

रेलवे स्टेशन पर न जाने कितनी ऐसी मनोदुर्बल महिलायें हैं जिनके साथ प्रतिदिन बलात्कार होता है और वे बेचारी समझ भी नहीं पातीं कि उनके साथ क्या हो रहा है. सरकार उनके बंध्याकरण का प्रबंध कर उन्हें छोड़ देती है. ये कौन सी पश्चिमी सभ्यता से पनपी है प्रकृति!! 

बहुत सधा हुआ आलेख है अनुराग जी. एक उंगली दूसरों की तरफ उठाकर वे ये भूल जाते हैं कि चार अपनी तरफ भी उठी हुयी है. और तो और, एक और पहलू तो आपने छुआ भी नहीं- सबों ने कहा कि यह एक पाशविक कृत्य है. लेकिन कोई जीव-विज्ञानी यह बताएगा कि आखिर किस पशु में इस प्रकार के लक्षण पाए जाते हैं!!

इस पोस्ट पर संजय जी( मो सम कौन..) ने दो टूक प्रश्न किया...

 व्यावहारिक रूप में क्या होना चाहिये कि ऐसा न हो?

इसका उत्तर भी अनुराग जी ने बड़े ही नपे-तुले शब्दों में दिया...

- भावनात्मक अनुशासन, प्रशासन, न्याय, विधान बनाते समय मानवता को सर्वोच्च शिखर पर रखना, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और सामाजिक व्यवस्था का संतुलन, जीवन का आदर, सक्षम और सच्चरित्र नेतृत्व, आज की समस्याओं का हल आज के परिप्रेक्ष्य मे देखने का प्रयास, वसुधैव कुटुंबकम की तर्ज़ पर हमारी समस्याओं का हल यदि वसुधा पर अन्यत्र खोजा जा चुका है तो उसे मुदितमन से स्वीकार करना, अपनाना (उदाहरण - हिन्दू विवाह पद्धति मे तलाक और इस्लाम में एक-विवाह, ईसाइयों मे दत्तक संतति आदि) ....

- फिरकापरस्ती, निहित स्वार्थ, लोभ, उत्कोच, अपराधी, असामाजिक मनोवृत्ति का दमन या नियंत्रण ...

- नागरिक समानता, सब के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य (सब मतलब "सब")

- स्थानीय समस्याओं के हल के लिए स्थानीय लोगों का सहयोग, राष्ट्रीय समस्याओं के लिए राष्ट्र भर का 

- समस्याओं का रोना रोने के बजाय उनके हल का प्रयास - जैसे नदी के पानी पर राज्यों के झगड़े के बजाय जल-नियमन के कारगर तरीके ढूँढने और अपनाने का प्रयास 

... समस्याएँ बड़ी हैं तो सुझाव भी लंबे ही होंगे, हर बात का हल मैं या आप पहले से जानते ही हों, यह भी ज़रूरी नहीं, लेकिन हल निकालने के प्रयास या मगजपच्ची में यदि अच्छे, बुद्धिमान और सक्षम (तीनों खूबियाँ एक साथ होना अनिवार्य शर्त है) लोग शामिल हो सकें तो सबका भला ही होगा ...



मैं इस पोस्ट को पढ़कर बड़ा प्रसन्न था लेकिन अभी विद्वान ब्लॉगर डा0 श्याम गुप्ता जी का कमेंट पढ़ा.....



एक दम बेहूदा मूर्खतापूर्ण आलेख है ...

-------क्या आपको ज्ञात है कि अमेरिका में अधिकाँश राज्यों में सिर्फ विवाहिता महिला का रेप ही रेप माना जाता है ...कुंवारी से नहीं( कुंवारी वहां होती ही नहीं ) रेप माना को रेप ही नहीं जाता जिसका अभी हाल में ही भारतीय मूल की नेता ने विरोध किया है और परिवर्तन लाने की बात हो रही है..
---- पश्चिम की बच्चों की संस्कृति भी आप-हम देख चुके हैं कुछ वर्षों में ही ६०-६१ बार बच्चे स्कूलों में गोलियां चलाकर साथियों को मार चुके हैं...`
----- आप को पता है कि अमेरिका में रिश्वत देकर काम कराने को वैध माना जाता है ...
---- प्रत्येक स्थान पर टिप ( वह भी रिश्वत ही है ) को देना आवश्यक माना जाता है अपितु ओफीसिअल रूप में ही टिप ले ली जाती है...

----- ये अक्ल के दुष्मन पश्चिम के नकलची ..कब सुधरेंगे ...अपनी सभ्यता पर चलेंगे ताकि देश सुधरे....

मैं तो विद्वान डा0 श्याम गुप्ता जी के कमेंट को पढ़ने के बाद भी नहीं सुधरा। मैं तो अब भी अपने इसी विचार पर दृढ़ हूँ....

यह हमारी सामंतवादी सोच है जो महिलाओं को कभी घर से बाहर निकलते, काम करते, अपने पैरों पर खड़े होकर मन मर्जी से जीवन जीते नहीं देखना चाहती। यह सोच कभी हाथी पर, कभी पोथी पर. कभी नोटों की बड़ी गठरी पर सवार हो सीने पर मूंग दलने चली आती है।  हाँ इस पर अब थोड़ा संशोधन करते हुए यह भी जोड़ देता हूँ कि...कभी ब्लॉग की शानदार पोस्ट पर टिप्पणी के रूप में सवार हो हमारे सीने पर मूँग दलने चली आती है।

आपका क्या खयाल है?

नोटः आप अपने विचार यहाँ न लिखकर An Indian in Pittsburgh में ही दे सकते हैं। मैं उसमें आये कमेंट भी पढ़ रहा हूँ।..धन्यवाद। 

21 comments:

  1. सबसे पहले तो आपका धन्यवाद! आलेख के मूर्खतापूर्ण होने के बारे मे मैं क्या कहूँ, हाँ पश्चिम/अमेरिका के बारे मे डॉ. श्याम गुप्ता द्वारा कही गयी अधिकांश बातें गलत हैं:

    @ क्या आपको ज्ञात है कि अमेरिका में अधिकाँश राज्यों में सिर्फ विवाहिता महिला का रेप ही रेप माना जाता है ...कुंवारी से नहीं
    - गलत
    @ कुंवारी वहां होती ही नहीं
    - उनकी यह कपोल-कल्पना निराधार ही नहीं, जैविक असंभावना भी है, वैसे तो नाम से पहले डॉ लिखा है,
    @ पश्चिम की बच्चों की संस्कृति भी आप-हम देख चुके हैं कुछ वर्षों में ही ६०-६१ बार बच्चे स्कूलों में गोलियां चलाकर साथियों को मार चुके हैं...
    - अमेरिका मे बंदूक ही नहीं, पूर्ण-स्वचालित असोल्ट राइफलें भी बिना लाइसेन्स बिकती हैं, और हर हत्या कागज पर दर्ज़ होती है, फिर भी वहाँ मानव-हत्या का रिकर्ड भारत से बेहतर है।
    @ आप को पता है कि अमेरिका में रिश्वत देकर काम कराने को वैध माना जाता है ...
    - पूर्ण असत्य, किस खयाली दुनिया मे रह रहे हैं

    @ प्रत्येक स्थान पर टिप ( वह भी रिश्वत ही है ) को देना आवश्यक माना जाता है अपितु ओफीसिअल रूप में ही टिप ले ली जाती है...
    - न तो टिप/बख्शीश रिश्वत है और न ही ज़रूरी, बल्कि सरकारी कर्मचारी को तो टिप लेने देने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अन्य स्थानों मे भी अपने ग्राहकों, कंपनियों आदि से उफार स्वीकार करने के बारे मे भी ऐसे नियम हैं कि हम-आप कल्पना भी नहीं कर सकते। वालमार्ट पर विदेश मे रिश्वत देकर काम कराने की खबरों तक की जांच हो रही है, तो अमरीका की धरती पर यह कैसे संभव होगा?

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  2. मैं 'स्वदेश' फिल्म के एक डायलोग की कॉपी मर रहा हूँ लेकिन सच यही है "जब भी हम कम्पटीशन में पिछड़ने लगते हैं हमेशा सभ्यता और संस्कृति का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेते हैं | मैं नहीं मानता कि भारत देश सबसे महान है , लेकिन हम में महान बनने की कुव्वत है | जिसे हम पश्चिमी संस्कृति कह रहे हैं ये उनकी संस्कृति है और उन्हें इस पर गर्व है |"
    जब दोष मेरी आँखों में है तो मैं तस्वीर को खराब कैसे कह दूँ !

    सादर

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  3. अच्छी लगी यह पोस्ट चर्चा!

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  4. बहुत अच्छी पड़ताल। अनुराग जी ने अच्छा आइना दिखाया है।
    डॉ.श्याम जी गुप्त के बारे में क्या कहें- बेहद मूर्खतापूर्ण...?

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  5. गुणों पर निर्णय होना चाहिये, उपाधियाँ बहुधा भ्रमित कर जाती हैं। कितनी ही चीजें ऐसी हैं जो हमें सीखनी हैं पश्चिम से।

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  6. डॉ श्याम जी के हर अर्थ-हीन और बेबुनियाद आरोप का उत्तर तो स्मार्ट जी दे ही चुके हैं ।

    जैसा मैंने कहा - "संस्कृति की बातें करने वाले, और पश्चिम को कोसने वाले, न अपनी संस्कृति को जानते हैं, न पश्चिम की संस्कृति को । बस , मन में कीचड भरी है - तो वही उगल कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं ।"

    आप अमेरिका के क़ानून हम सब को पढ़ाने आये हैं ? स्रोत बताइये डॉ श्याम जी कि यह सब जानकारियाँ आपको कहाँ से मिली हैं ?

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  7. अपनी शेव बनाके साबुन दुसरे के मुंह पे फैंकना आसान है जिन लोगों ने,स्वयं घोषित आचार्यों ने अमरीका और योरोप नहीं देखा वह ऐसी ही बातें करतें हैं हैं जैसी श्याम गुप्त जी कर रहें हैं ,हमने तो

    वहां अपने दीर्घ

    कालीन प्रवास के दौरान 100% यह देखा है ,वहां क़ानून का पालन होता है रात को दो बजे गली कूचे से गुजरते भी जब गली के किसी मोड़ पे स्टॉप सिग्नल आता है तो वहां आदतअन रुका जाएगा .न

    रुकने की आदत नहीं है किसी को .शराब पीकर गाडी चलाना वहां नियम नहीं है अपवाद है .खुली शराब की बोतल गाडी में नहीं मिलेगी .

    औरतों को घूरते लोगों को लास वेगास में भी नहीं देखा जाता जो अमरीका की भोगावती है .यहाँ अपराध दर न्यूनतम है .

    औरत का सम्मान है मर्द औरत बराबर हैं अखबार जो अपवाद खबरें अमरीका की छाप देते हैं उन्हें हमारे काबिल लोग नियम मान लेते हैं .

    कौन सी भारतीय सभ्यता की बात करते हैं ये तमाम लोग ?

    पूरब और पश्चिम अब पृथ्वी के ध्रुव की तरह बारहा बदलते हैं आपस में .कोई बतलाये पश्चिमी संस्कृति क्या है ?लिबास और और औरत का खुला शरीर नहीं है पश्चिमी संस्कृति .देवेन्द्र पांडे जी

    आभार आपका इस पोस्ट के लिए .भारतीय संस्कृति के ठेकेदारों को सामने लाने के लिए .अनुराग जी को बधाई एक बढ़िया आलेख के लिए .जो ज़मीन से जुड़ा है .

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    1. आपका भी आभार इस शानदार प्रतिक्रिया के लिए।

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  8. रेलवे के जिस सर्जन की चर्चा है उनको 'मूर्खतापूर्ण' का खिताब देने की पुरानी बीमारी है। मुझे भी इस लेख-सीता का विद्रोह-पर टिप्पणी के रूप मे यही खिताब उनके द्वारा दिया गया है। सरकारी नौकरी मे रहते हुये RSS की थ्योरी पर चलने वाले इस ब्लागर महानुभाव ने पहले अपनी प्रोफाईल मे रियूमर स्पीच्यूटेड सोसाईटी का स्लोगन लगाया हुआ था जिस पर मैंने एक पोस्ट लिखी थी उसके बाद से प्रोफाईल को सुधार कर उस स्लोगन का अलग से एक ब्लाग बना लिया गया है।

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  9. तसलीम और साईंस ब्लागर एसोशीएशन पर इन महानुभाव की टिप्पणीयाँ देख लीजीये, इनकी विद्वता पता चल जायेगी.

    वैसे पश्चिमी संस्कृति की बुराई करना और अपनी गलती पर परदा डालना एक फैशन बन गया है.

    भारतीय संस्कृति के इन ठेकेदारो के लिये मै स्वामी विवेकानंद जी का एक कथन निचे दे रहा हुं

    "शुद्ध आर्य रक्त का दावा करने वालो, दिन-रात प्राचीन भारत की महानता के गीत गाने वालो, जन्‍म से ही स्‍वयं को पूज्‍य बताने वालो, भारत के उच्‍च वर्गो, तुम समझते हो कि तुम जीवित हो ! अरे, तुम तो दस हजार साल पुरानी लोथ हो….तुम चलती-फिरती लाश हो….मायारुपी इस जगत् की असली माया तो तुम हो, तुम्‍हीं हो इस मरुस्‍थल की मृगतृष्‍णा….तुम हो गुजरे भारत के शव, अस्‍थि-पिंजर…..क्‍यों नहीं तुम हवा में विलीन हो जाते, क्‍यों नहीं तुम नये भारत का जन्‍म होने देते?"

    -- स्वामी विवेकानंद , कम्‍पलीट वर्क्‍स (खण्‍ड-7) , पृ.354

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    1. well said ashish ji - and on the right day and right context. i salute you.

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  10. डाग्दर बाबू का अपना चश्मा है क्या कीजै

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  11. हमारे दादा जी एक बात कहते थे -- यदि गधे पर खांड की बोरी लदी हो तो बोरी को उतार लो और गधे को मारो लात -- यानि अच्छाई को ग्रहण कर लो और बुराई को छोड़ दो।

    अच्छाई बुराई सभी जगह होती हैं। कोई अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होता।

    इतनी सख्त सोच रखना भी सही नहीं।

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  12. सबको ओशो की किताबें पढनी चाहिए इन विषयों से सम्बन्धित.

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  13. देवेन्द्र भाई!
    मैं दुबारा वहाँ गया नहीं इसलिए शायद डॉक्टर साहब के अनमोल विचारों से अनभिज्ञ रह गया. अनुराग जी का बड़प्पन है कि उन्होंने मॉडरेशन के बावजूद भी उनके कमेन्ट को प्रकाशित किया, उसे डिलीट नहीं किया. और ऐसा करके उन्होंने अपने टिप्पणी बॉक्स के ऊपर लिखे अपने वक्तव्य को सच साबित किया है.
    इस प्रकार की विकृत मानसिकता और एक रंग का चश्मा लगाकर दुनिया को देखने वाले लोगों को के लिए तर्क और तथ्य का कोई महत्व नहीं होता. और वे इनको समझ भी नहीं सकते! किसी विशेष घटना के सन्दर्भ में मैंने भी अमेरिका के विषय में संवेदनहीनता की बात कही थी. किन्तु ये गुप्त जी के गुप्त-ज्ञान का तो क्या कहना!!
    आपने यहाँ उसकी चर्चा की यह तो ठीक है, लेकिन इन जैसे लोगों के लिए इतनी चर्चा करना उन्हें बेवज़ह पब्लिसिटी देना है. पहले मैं भी उलझ जाता था, पर अब मैच्युरिटी आ गयी है तो इनके लिए इग्नोर करना ही सही ट्रीटमेंट लगने लगा है. फेसबुक पर इस तरह की बहस में मैं तुरत "हार गया" बोलकर निकल लेता हूँ. क्योंकि साझने वाले को समझाया जा सकता है, लेकिन जो समझे बैठा है उसे क्या समझायेंगे.
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    विषयान्तर हो रहा हूँ, लेकिन कल फेसबुक पर एक स्टैटस देखा जिसमें एक वरिष्ठ पत्रकार (कई चैनल पर देखे जाते हैं और और प्रोफ़ेसर हैं पत्रकारिता के - फेसबुक पर वाहवाही के लिए डेढ़ दर्ज़न स्टुडेंट्स भी पाल रखे हैं) ने सीमा पर हुई घटना के विषय में लिखा है कि यह सब मीडिया की शरारत है, जो उन्होंने इसे एक बड़ा इश्यू बना दिया है. क्या आपको लगता है कि ऐसे लोग निंदा के भी हकदार हैं??
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    सौ बात की एक बात.. जब सारे लोग एक विषय पर कॉमन राय रखते हों और एक व्यक्ति ज़रा हटके बोल रहा तो अरस्तू की बात ही माननी चाहिए:
    He who is unable to live in society, must be either a God or a beast!!

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  14. डॉ.साहब की टिप्पणियाँ अपने ब्लाग पर
    मुझे भी मिल चुकी हैं !

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  15. हमारी तो आदत है अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों के सर पर फोडना. फिर चाहे पाकिस्तान या अमेरिका या भारत के अंदर भी शीला दीक्षित कितनी बार कहती हैं कि दिल्ली में बढते अपराध उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के कारण है. मुमबई बालों को भी उत्तर भारतीय ही शरारत की जड दिखाई देते है.

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  16. अमेरिका ही नहीं अधिकाँश देशों में क़ानून व्यवस्था बहुत अच्छी है ... मियाम कायदे सभी के लिए हैं ... माने जाती हैं ...
    अपने समाज में भी रहे होंगे कभी ... पर अभी भी उस कभी का सहारा लेते रहना ठीक नहीं ... जो सीखने वाली बट है उसको खुले मन से ले लेना चाहिए ... विरोध के लिए विरोध ... क्यों भई ...

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  17. पहली बार ऐसा हो रहा है कि किसी पोस्ट पर आयी टिप्पणियाँ और प्रति-टिप्पणियां पढने के बाद पोस्ट पढने जा रहा हूँ -इसकी क्रेडिट आपको!

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  18. एक सार्थक चर्चा हो गई.....बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...

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