(1) न दैन्यं न पलायनम्....
यह प्रवीण पाण्डेय जी का ब्लॉग है। जानता हूँ, इससे सभी परिचित हैं। मैं बस भूमिका के लिए बता रहा हूँ। पिछले दिनो इस ब्लॉग पर एक पोस्ट आई.. पढ़ते-पढ़ते लिखना सीखो। शीर्षक पढ़कर तो ऐसा लगा कि यह बच्चों को कोई उपदेश देने वाली पोस्ट है लेकिन पढ़ने के बाद एहसास हुआ कि यह हमारे जैसे बेचैन लोगों की व्यथा-कथा है। इस पोस्ट के माध्यम से जो विमर्श उठाया गया है वह यह..
प्रश्न बड़ा मौलिक उठता है, कि यदि इतना स्तरीय और गुणवत्तापूर्ण लिखा जा चुका है तो उसी को पढ़कर उसका आनन्द उठाया जाये, क्यों समय व्यर्थ कर लिखा जाये और औरों का समय व्यर्थ कर पढ़ाया जाये ?
ब्लॉग और कमेंट तो आप लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं लेकिन यहाँ मेरे कमेंट के अलावा कुछ ऐसे कमेंट हैं जो मुझे बहुत अच्छे लगे...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी ने लिखा....
“जो भी जानने योग्य है, वह सब इन पुस्तकों में है, यदि कुछ लिखा जायेगा तो वह इसी ज्ञान के आधार पर ही लिखा जायेगा।” मैं असहमत हूँ इस धारणा से कि पुराना ही बहुत है पढ़ने को तो नया क्या लिखा जाय। यदि कबीर और तुलसी ने ऐसा सोचा होता तो आज हमारे पास क्या वह अनमोल निधि होती जो वे छोड़ गये। तुलसी ने तो बाकायदा घोषित किया था कि वे कुछ नया नहीं कह रहे हैं। कबीर ने इसके उलट यह कह दिया था कि “मसि कागद छुयौ नहीं कलम गही नहिं हाथ”
दरअसल विद्या अथवा ज्ञान का अर्जन करना अलग बात है और कुछ सर्जन करना बिल्कुल अलग। मनुष्य का मस्तिष्क एक प्रोसेसर का काम तो करता ही है किन्तु इसमें नये विचार और नयी धारणाएँ जन्म भी लेती हैं। दुनिया में साहित्य, संगीत, कला इत्यादि के क्षेत्र में जो बड़े रचनाकार हुए हैं वे एक प्रकार से गिफ़्टेड हैं कि उनके मस्तिष्क में नयी रचना जन्म लेती रहती है। यह एक अद्भुत प्रक्रिया है। प्रकृति ने कम या अधिक मात्रा में प्रायः सभी मस्तिष्कों में यह रचनात्मक प्रवृत्ति या शक्ति (potential) दे रखी है। अनुकूल वातावरण पाकर इसका विकास हो जाता है। यहाँ एक अच्छे गुरू की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है लेकिन अनिवार्य नहीं।
दरअसल विद्या अथवा ज्ञान का अर्जन करना अलग बात है और कुछ सर्जन करना बिल्कुल अलग। मनुष्य का मस्तिष्क एक प्रोसेसर का काम तो करता ही है किन्तु इसमें नये विचार और नयी धारणाएँ जन्म भी लेती हैं। दुनिया में साहित्य, संगीत, कला इत्यादि के क्षेत्र में जो बड़े रचनाकार हुए हैं वे एक प्रकार से गिफ़्टेड हैं कि उनके मस्तिष्क में नयी रचना जन्म लेती रहती है। यह एक अद्भुत प्रक्रिया है। प्रकृति ने कम या अधिक मात्रा में प्रायः सभी मस्तिष्कों में यह रचनात्मक प्रवृत्ति या शक्ति (potential) दे रखी है। अनुकूल वातावरण पाकर इसका विकास हो जाता है। यहाँ एक अच्छे गुरू की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है लेकिन अनिवार्य नहीं।
DrKavita Vachaknavee ने लिखा....
जो चार शब्द लिख कर अपने अहम् का पहाड़ खड़ा करने में लग जाते हों, उन्हें अवश्य लिखना बंद कर देना चाहिए(क्योंकि वह अहम् को विसर्जित करने के काम से उलटा कर रहा है) परंतु जो बड़े सरोकारों को लेकर लिख रहा हो उसे और और लिखना चाहिए। इसीलिए सरोकारों की व्यापकता ही किसी भी लेखक का कद और किसी भी लेखक का औचित्य भी प्रमाणित करती है। दूसरे, प्रत्येक के अनुभव और अनुभूति भिन्न होती है... उसकी अभिव्यक्त भी भिन्न ही होगी। इसलिए ऐसा कभी नहीं होगा कि लिखने के विषय चुक गए सो, अब बस !
मैने लिखा...
हम सभी बेचैनी में जीने वाले लोग हैं। वृत्ति और प्रवृत्ति की खाई जितनी चौड़ी होती जाती है आदमी उतना ही बेचैन होता जाता है। हमने बेचैनी अपना ली है तो यह दंश हमे झेलना ही पड़ेगा। जीविका के साथ-साथ जीवन जीना भी पड़ेगा। कुछ पकड़ने में कुछ छूट जाता है। कभी कभी घर, कभी शहर रूठ जाता है। हम सुविधानुसार लिखने वाले लोग हैं। जिनको आप पढ़ते हैं उनमे अधिकांश महान लेखक वे हुए जिन्होने सुविधाओं की चिंता नहीं की लिखा और बस लिखा। तुलसी, कबीर, गालिब, निराला..ऐसे ही जाने कितने महान लेखक हुए जो भूख सहते थे यहाँ। घर-परिवार छोड़कर निरंतर सत्य की खोज में, साहित्य साधना में लगे रहे। हम भूख क्या, थोड़ी असुविधा भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। लेकिन एक खुशी है कि जीवन भले मनमर्जी से न जी पाते हों लेकिन जीवन को देखते, महसूस करते और अपने सामर्थ्य के अनुरूप अभिव्यक्त तो करते ही रहते हैं। संसार अच्छा हो इसकी दुआ करते हैं और सुना है, दुआओं का असर होता है । सरस्वती कब, किससे, क्या लिखवा दें! कुछ नहीं कहा जा सकता। इसलिए पढ़ते रहें और लिखते रहें...
इस विषय में श्री अनूप शुक्ल जी के विचार भी बड़े काम के हैं....
तो भैया लब्बो-लुआब यह कि अच्छा और धांसू च फ़ांसू लिखने का मोह ब्लागिंग की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। ये साजिश है उन लोगों द्वारा फ़ैलाई हुयी जो ब्लाग का विकास होते देख जलते हैं और बात-बात पर कहते हैं ब्लाग में स्तरीय लेखन नहीं हो रहा है। इस साजिश से बचने के लिये चौकन्ना रहना होगा। जैसा मन में आये वैसा ठेल दीजिये। लेख लिखें तो ठेल दें, कविता लिखें तो पेल दें। ....पूरा पढ़ने का मन हो तो यहाँ जाना होगा।
(2) सुनिए मेरी भी....
प्रवीण शाह जी अपने इस ब्लॉग में शानदार विज्ञान कथा लिख रहे हैं। चार किश्त लिख चुके हैं। यदि आप विज्ञान कथाओं या जासूसी कथाओं के शौकीन हों तो मूड बदलने के लिए यहाँ जा सकते हैं। इन पोस्टों पर आई टिप्पणियों में एक मजेदार बात यह देखने को मिली कि कथा जितनी रोचक हो रही है, कमेंट उतने कम आ रहे हैं! कमेटस् पर मत जाइये शौकीन हों तो पढ़ आइये। आप पढ़कर रोचक.. से कुछ अधिक नहीं लिख पायेंगे ।
(3) क्वचिदन्यतोsपि..
डा0 अरविंद मिश्र जी के इस ब्लॉग से सभी परिचित हैं। फिलवक्त मिश्र जी सोनभद्र की एक पुनरान्वेषण यात्रा पर हैं। विज्ञान कथा से मुँह मोड़ वैज्ञानिक ढंग से वीर लोरिक और मंजरी की ऐतिहासिक प्रेम कथा से हमे परिचित करा रहे हैं। यह पोस्ट भी काफी रोचक है। पोस्ट का एक अंश देखिये...
....मंजरी की विदाई के बाद डोला मारकुंडी पहाडी पर पहुँचाने पर नवविवाहिता मंजरी लोरिक के आपार बल को एक बार और देखने के लिए चुनौती देती है और कहती है कि वे अपने प्रिय हथियार बिजुलिया खांड (तलवार नुमा हथियार) से एक विशाल शिलाखंड को एक ही वार में दो भागो में विभक्त कर दें -लोरिक ने ऐसा ही किया और अपनी प्रेम -परीक्षा में पास हो गए -यह खंडित शिला आज उसी अखंड प्रेम की जीवंत कथा कहती प्रतीत होती है -मंजरी ने खंडित शिला को अपने मांग का सिन्दूर भी लगाया।....
दो भाग में विभक्त पत्थर देखना हो तो आपको वहीं जाना होगा। इस पर आई टिप्पणियाँ बता रही हैं कि इस पोस्ट को लोगों ने खूब पसंद किया है। बस एक बानगी देखिए..
मेरे ही लिए किसी ने
आसमान भर तारे,
ओढा कर ठंडी हवा
सुला दिया करता है,
रोज़ सुबह जलाता है
एक उजला सा सूरज,
सहला कर उठाता है
स्नेहिल सी किरणों से,
पैरों तले बिछाता है
ओस की नाज़ुक चादर ,
जाने कितने रंगों से
भरता है फूलों को,
उडेलता है उनमें खुशबू
चुनता है लम्हों को
बुनता है घटना-क्रम
अच्छा-बुरा सब जोड़
सजाता है ज़िन्दगी,
उसी ने गढ़ा है तुम्हें
जैसे मेरे ही लिए,
उसे जानती नहीं मैं
पर महसूस करतीं हूँ
जैसे तुम शशांक ,
तुम्हें भी कहाँ जाना,
बस प्यार किया है,
डरती हूँ जानने से,
कहीं खो न दूं उसे
जिसे तुममें पाती हूँ।
अगर तुम ख्वाब हो
तो जागना नहीं चाहती
अगर मेरा ख्याल हो
तो इसकी डोर थामे
गुम हो जाना चाहती हूँ
तुममें ही कहीं ...
ऐसे की फिर कभी
किसी को न मिलूं
कहीं भी नहीं।....................
नोटः सभी शीर्षक में क्लिक करके आप संबंधित ब्लॉग तक पहुँच सकते हैं।
इस विषय में श्री अनूप शुक्ल जी के विचार भी बड़े काम के हैं....
तो भैया लब्बो-लुआब यह कि अच्छा और धांसू च फ़ांसू लिखने का मोह ब्लागिंग की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। ये साजिश है उन लोगों द्वारा फ़ैलाई हुयी जो ब्लाग का विकास होते देख जलते हैं और बात-बात पर कहते हैं ब्लाग में स्तरीय लेखन नहीं हो रहा है। इस साजिश से बचने के लिये चौकन्ना रहना होगा। जैसा मन में आये वैसा ठेल दीजिये। लेख लिखें तो ठेल दें, कविता लिखें तो पेल दें। ....पूरा पढ़ने का मन हो तो यहाँ जाना होगा।
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(2) सुनिए मेरी भी....
प्रवीण शाह जी अपने इस ब्लॉग में शानदार विज्ञान कथा लिख रहे हैं। चार किश्त लिख चुके हैं। यदि आप विज्ञान कथाओं या जासूसी कथाओं के शौकीन हों तो मूड बदलने के लिए यहाँ जा सकते हैं। इन पोस्टों पर आई टिप्पणियों में एक मजेदार बात यह देखने को मिली कि कथा जितनी रोचक हो रही है, कमेंट उतने कम आ रहे हैं! कमेटस् पर मत जाइये शौकीन हों तो पढ़ आइये। आप पढ़कर रोचक.. से कुछ अधिक नहीं लिख पायेंगे ।
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(3) क्वचिदन्यतोsपि..
डा0 अरविंद मिश्र जी के इस ब्लॉग से सभी परिचित हैं। फिलवक्त मिश्र जी सोनभद्र की एक पुनरान्वेषण यात्रा पर हैं। विज्ञान कथा से मुँह मोड़ वैज्ञानिक ढंग से वीर लोरिक और मंजरी की ऐतिहासिक प्रेम कथा से हमे परिचित करा रहे हैं। यह पोस्ट भी काफी रोचक है। पोस्ट का एक अंश देखिये...
....मंजरी की विदाई के बाद डोला मारकुंडी पहाडी पर पहुँचाने पर नवविवाहिता मंजरी लोरिक के आपार बल को एक बार और देखने के लिए चुनौती देती है और कहती है कि वे अपने प्रिय हथियार बिजुलिया खांड (तलवार नुमा हथियार) से एक विशाल शिलाखंड को एक ही वार में दो भागो में विभक्त कर दें -लोरिक ने ऐसा ही किया और अपनी प्रेम -परीक्षा में पास हो गए -यह खंडित शिला आज उसी अखंड प्रेम की जीवंत कथा कहती प्रतीत होती है -मंजरी ने खंडित शिला को अपने मांग का सिन्दूर भी लगाया।....
दो भाग में विभक्त पत्थर देखना हो तो आपको वहीं जाना होगा। इस पर आई टिप्पणियाँ बता रही हैं कि इस पोस्ट को लोगों ने खूब पसंद किया है। बस एक बानगी देखिए..
शानदार वर्णन पंडित जी! मेरे लिए तो एकदम नॉस्टैल्जिक है, ननिहाल की बात जो ठहरी! यह सारा इलाका चंद्रकांता संतति के कथानक की पृष्ठभूमि रही है. रिहन्द नदी के बाँध के कैचमेंट एरिया का पूरा जंगल पैदल छान मारा है मैंने. चमत्कृत करता है यह सब!! लोरिक पत्थर के विशालकाय टुकड़े के खंडित भाग को देखकर साफ़ पता चलता है कि किसी ने सेब को चाकू की धार से दो टुकड़ों में काट दिया हो!! अब आप वहाँ हैं तो ऐसी अद्भुत कहानियाँ और भी मिलेंगी सुनने को!! आभार आपका!!
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(4) 'shashank'.....
चिंतन, विज्ञान कथा, ऐतिहासिक प्रेम कथा मेरा मतलब ऊपर के लिंक के सभी ब्लॉग आप पहले ही पढ़ चुके हों और आपको मेरी यह पोस्ट बोर लग रही हो तो ठहरिए! इतनी जल्दी मत जाइये। मैं आपको ऐसे ब्लॉग से परिचित कराता हूँ जिसे आपने नहीं पढ़ा। शंशांक ..हाँ, यह ब्लॉग हिंदी में ही है लेकिन इसका नाम अंग्रेजी में है। कु0 स्मिता पाण्डेय के इस ब्लॉग में अभी तक कुल 18 कविताएँ हैं लेकिन टिप्पणियाँ 18 से कम! हिंद युग्म से जुड़े लोग इस लेखिका से परिचित हैं। हिंदयुग्म द्वारा प्रकाशित पहली पुस्तक संभावना डॉट कॉम में भी इनकी कविताएँ प्रकाशित हैं। ब्लॉग शीर्षक ही कविताओं का शीर्षक है। 18 कविताएँ क्रमशः शशांक 1,2,3.....17,18 नाम से प्रकाशित हैं। कविता प्रेमी पाठकों के लिए इनकी कविताएँ अच्छी लगेंगी। इनके दो और ब्लॉग हैं। उनके नाम भी अंग्रेजी में हैं..जिनमें एक ब्लॉग अंग्रेजी का है, दूसरा हिंदी का। इनमे भी टिप्पणियों की संख्या अत्यधिक कम। इनके ब्लॉग को पढ़कर मैने ऐसा महसूस किया कि ये दूसरों के ब्लॉग नहीं पढ़तीं या कमेंट नहीं करतीं। अधिक जानकारी आप ऊपर दिये लिंक पर जाकर स्वयम् कर सकते हैं। मेरा विश्वास है कि इन कविताओं को पढ़कर आपको खुश हो जायेंगे। कविता की एक बानगी देखिए....
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टांक दिए हैं करीने सेमेरे ही लिए किसी ने
आसमान भर तारे,
ओढा कर ठंडी हवा
सुला दिया करता है,
रोज़ सुबह जलाता है
एक उजला सा सूरज,
सहला कर उठाता है
स्नेहिल सी किरणों से,
पैरों तले बिछाता है
ओस की नाज़ुक चादर ,
जाने कितने रंगों से
भरता है फूलों को,
उडेलता है उनमें खुशबू
चुनता है लम्हों को
बुनता है घटना-क्रम
अच्छा-बुरा सब जोड़
सजाता है ज़िन्दगी,
उसी ने गढ़ा है तुम्हें
जैसे मेरे ही लिए,
उसे जानती नहीं मैं
जैसे तुम शशांक ,
तुम्हें भी कहाँ जाना,
बस प्यार किया है,
डरती हूँ जानने से,
कहीं खो न दूं उसे
जिसे तुममें पाती हूँ।
अगर तुम ख्वाब हो
तो जागना नहीं चाहती
अगर मेरा ख्याल हो
तो इसकी डोर थामे
गुम हो जाना चाहती हूँ
तुममें ही कहीं ...
ऐसे की फिर कभी
किसी को न मिलूं
कहीं भी नहीं।....................
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नोटः सभी शीर्षक में क्लिक करके आप संबंधित ब्लॉग तक पहुँच सकते हैं।
चकाचक है।
ReplyDeleteलिखने-पढ़ने की बात जो हुई वो पाण्डेयजी वाली पोस्ट पर तो आपकी बात से सवा सोलह आने सहमत -सरस्वती कब, किससे, क्या लिखवा दें! कुछ नहीं कहा जा सकता। इसलिए पढ़ते रहें और लिखते रहें...
अनोखा हैँ भाई ये पोस्ट
ReplyDeleteआपने प्रशंसा में 12 कमेंट और किये थे। इतनी ज्यादा प्रशंसा मैं पचा नहीं पाया सो मिटा दिया। मेरे लिए एक ही बहुत है। आपके स्नेह के लिए धन्यवाद।
Deleteई कै चर्चाकारी है भाई !
ReplyDeleteकै को तौ समझा जाय....।
ReplyDeleteसमझ लिया गया !
Deleteपांडे जी की पोस्ट का विषय तो सचमुच अच्छा लगा और आपके द्वारा चुनिन्दा कमेंट्स भी.
ReplyDeleteसच कहा है आपने, टिप्पणियाँ अपने आप में साहित्य का रूप ले लेती हैं।
ReplyDeleteदेवेन्द्र भाई! अब अपनी कही बात वापस लेता हूँ जो मैनें इस ब्लॉग के विषय में आपसे कही थी.. और हाँ, क्षमा सहित वापस ले रहा हूँ.. ब्लॉग संकलक/चर्चाकार तो बहुत हैं पर टिप्पणी के चर्चाकार के रूप में यह पहल स्वागत योग्य है.
ReplyDeleteऐसा कहकर मुझे शर्मिंदा न करें बड़े भाई। आपकी बातों ने ही मुझे सचेत किया कि कुछ हट कर चर्चा की जाय।
Deleteसचेत बड़े भाई ने किया तो ये उनका फ़र्ज़ है ! बहरहाल पहले पहल का आनंद ही कुछ और ...
DeleteAll the great discoveries are being made ,was once an illusion of a great scientist of his time ,it was before the advent of the electron ,today pravin ji said almost a
ReplyDeleteparallel thing .Read 100 pages if you write one said one of a great Hindi author ,.Reading enhances the vocabulary too, constantly informs a person .All our write ups
are based upon reading and scanning ,both have their significance .We address different strata of society when we write .I address the Hindi readers by constantly
writing things in Hindi and explaining the definitions which are often missing in the original write ups in english .My audience is different .It is a matter of addiction and
hooking whether you are binge writer or reader .
अच्छा विमर्श हुआ आपको पढ़के ,आपके पढ़ने के घनत्व और तीव्रता को देख कर .लिखने का अपना सुख है पढने का अपना .अभिव्यक्त होने के आनंद का कहना ही क्या .
कुछ हटके कुछ स्तरीय पढने को मिला पांडे जी के चिठ्ठे चिठ्ठे पर .
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए आपका आभारी हूँ।
Deleteये भी जोरदार रही पोस्ट ...
ReplyDeleteओर कविता तो कमाल कमाल बेमिसाल ...
ये तो गजबै ब्लाग बना दिया आपने! आल इन वन टाईप! कुछ चिट्ठाचर्चा ,कुछ समीक्षा ,कुछ सार संक्षेप -सभी एलिमेंट हैं यहाँ तो!
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
अनूठा कॉन्सेप्ट है यह आपका... शुभकामनायें!
और हाँ, आभार भी...
...
जे तौ चच्चाकारन मैं बेचैनी पैदा करन वारे काम कद्दये आपने ... राम बचावै!
ReplyDeletebakiya sab ko padhte hi rahte hain............padhte padhte ....... likhne ke liye hi apna blog banaya tha......na kuch likh pane ke karan bhi hame aap logon ko bataya hi hua hai ..........
ReplyDeletepost ki suruat jis blog aur tippani se hai unke to hum 'mook-pathak' hain ...... oos post pe aaye hue jin-jin prtikriya ka aapne ullekh kiya sabse sahmati bhi hai ...... nayke blog ka bhraman kar kuch parayan karte hain .........aap aise hin apne andaz me tippani-charcha 'charchiyate' rahiye ...........
pranam.
पोस्ट काफ़ी रोचक और ज्ञानवर्धक बन पडी है.
ReplyDeleteसफ़ल चर्चाकार बनने की राह पर चल पडे हैं आप तो, बधाई.:)
रामराम
आप से यही उम्मीद थी ...
ReplyDeleteबधाई देवेन्द्र भाई !
badhiya blog... aapne kament ko garima de diya dewendra bhai.
ReplyDeleteइस्मिता के एक ब्लॉग (life goes on) को तो पहले से पढ़ता रहा हूँ, पर यह shashank और भी चमकदार है। दोनों चिट्ठों के शीर्षकों को ही भाव-संयुक्त कर दें तो एक बात निकलती है। दर्शन की छात्रा होने की झलक सामने आती है।
ReplyDeleteशेष, यह ब्लॉग (ऐसे ब्लॉग) तो जरूरी था ही!
आभार।
एक अभिनव प्रयास ... संभवतः आपके इस प्रयास से हिंदी ब्लॉगिंग की टिप्पणियों में एक नयी जान आये .....!
ReplyDeleteइस वक्त वक्त मुद्दा है उस कथित ना -बालिग़ का जिसकी दरिंदगी ने बर्बरता को भी मात किया .इसे क़ानून की आड़ में ओट लेकर भागने न दिया जाए .ये कैसा ना -बालिग़ है ?
ReplyDelete