मैने कल अभी एक नया ब्लॉग बनाया आज यह दूसरा! आप भी कहेंगे.. पगला गया है! लेकिन यह अनायास बन गया । अब बन गया तो बन गया। हुआ यह कि कल चित्रों का एक ब्लॉग बनाया..चित्रों का आनंद। कुछ देर बाद संतोष जी का फोन आया.."अरे! सब गड़बड़ा दिये पाण्डेय जी!! आपके ब्लॉग का URL एड्रेस एकदम बेकार है। photoooooooooo ! यह भी कोई बात हुई? अभी कुछ नहीं बिगड़ा है इसे हटा दो और दूसरा ब्लॉग बना दो.. जिसमें छोटा एड्रेस रखो।" मैने कहा, "जो कमेंट आ चुके हैं, जिन्होंने फॉलो कर लिया है, उनका क्या? वे नाराज नहीं होंगे!" संतोष जी तपाक से बोले, "नहीं भाई, सभी फिर उसमें आ जायेंगे! लिखकर समझा दीजिएगा..कोई नाराज नहीं होगा।"
मैने झट आव देखा न ताव एक और ब्लॉग बना दिया! एड्रेस भी बढ़िया मिल गया meree photoo! लेकिन जब पुराने वाले को मिटाने चला तब तक 5 लोग उसके फॉलोवर बन चुके थे। उनको मिटाने में मेरी उँगलियाँ कांपने लगीं। अजीब मुसीबत! संतोष जी तो सो गये अपनी सलाह देकर.."मैं सोने जा रहा हूँ..लेकिन आप मिटा दो..दूसरा बना लो..नहीं तो पछताओगे..इत्ता लम्बा ब्लॉग यूआरएल एड्रेस लेकर कहाँ क्या मुँह दिखाओगे?" मुझे लगा बहुत गड़बड़ घोटाला हो रहा है। वैसे ही बेचैन आत्मा फिर यह नई बेचैनी ओढ़ ली! अब क्या करूँ ? जब मैने ठंडे होकर दिमाग चलाना शुरू किया तो पाया कि बिना ब्लॉग मिटाये आराम से पुराना एड्रेस बदला जा सकता है! प्रयास किया तो बदल गया। लेकिन अब समस्या थी कि इस नये बन गये ब्लॉग का क्या करूँ। मिटाने चला तो फिर नहीं मिटा। मुझे डिलीट करने ही नहीं आया।
आज सुबह बिहारी बाबू की पोस्ट पढ़ी। उस पर खूब मन लगाकर कमेंट किया। अब अपने कमेंट से मोह होने लगा तो सोचा इसको कहीं सहेज लूँ। कॉपी किया तो पेस्ट करते समय अचानक इस ब्लॉग का खयाल आया। नई पोस्ट पर क्लिक किया और यहीं पेस्ट करके चला गया ऑफिस। अभी शाम को लौटा तो नेट खोलते ही फिर इसी पर निगाह पड़ी! अब इसका क्या करूँ ? तभी विचार कौंधा क्यों न कमेंट का ही एक ब्लॉग बना दिया जाय! इस विचार का आना था कि लीजिए बन गया ब्लॉग। अब जो भी ब्लॉग पढ़ूँगा कमेंट अच्छा कर पाया तो यहाँ चेप दूँगा। मेरी मेहनत भी जाया नहीं होगी और मैने कब क्या लिखा, वह भी सुरक्षित रहेगा। अपना क्या किसी दूसरे ब्लॉगर का कमेंट अच्छा लगा तो उसको लेकर भी पोस्ट बनाई जा सकती है! इसीलिए ब्लॉग का नाम दे दिया..ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी। क्यों? क्या खयाल है आपका? यह मेरी कल शाम वाली बेवकूफी से बड़ी बेवकूफी तो नहीं ! यदि ऐसा है तो मिटाने की विधि लिखियेगा..मैं सहर्ष मिटा दूँगा। जाते-जाते मेरा वह वाला कमेंट तो पढ़ते जाइये जिसको मैने सुऱक्षित रखने के लिए इतनी मेहनत करी.....:)
मैने झट आव देखा न ताव एक और ब्लॉग बना दिया! एड्रेस भी बढ़िया मिल गया meree photoo! लेकिन जब पुराने वाले को मिटाने चला तब तक 5 लोग उसके फॉलोवर बन चुके थे। उनको मिटाने में मेरी उँगलियाँ कांपने लगीं। अजीब मुसीबत! संतोष जी तो सो गये अपनी सलाह देकर.."मैं सोने जा रहा हूँ..लेकिन आप मिटा दो..दूसरा बना लो..नहीं तो पछताओगे..इत्ता लम्बा ब्लॉग यूआरएल एड्रेस लेकर कहाँ क्या मुँह दिखाओगे?" मुझे लगा बहुत गड़बड़ घोटाला हो रहा है। वैसे ही बेचैन आत्मा फिर यह नई बेचैनी ओढ़ ली! अब क्या करूँ ? जब मैने ठंडे होकर दिमाग चलाना शुरू किया तो पाया कि बिना ब्लॉग मिटाये आराम से पुराना एड्रेस बदला जा सकता है! प्रयास किया तो बदल गया। लेकिन अब समस्या थी कि इस नये बन गये ब्लॉग का क्या करूँ। मिटाने चला तो फिर नहीं मिटा। मुझे डिलीट करने ही नहीं आया।
आज सुबह बिहारी बाबू की पोस्ट पढ़ी। उस पर खूब मन लगाकर कमेंट किया। अब अपने कमेंट से मोह होने लगा तो सोचा इसको कहीं सहेज लूँ। कॉपी किया तो पेस्ट करते समय अचानक इस ब्लॉग का खयाल आया। नई पोस्ट पर क्लिक किया और यहीं पेस्ट करके चला गया ऑफिस। अभी शाम को लौटा तो नेट खोलते ही फिर इसी पर निगाह पड़ी! अब इसका क्या करूँ ? तभी विचार कौंधा क्यों न कमेंट का ही एक ब्लॉग बना दिया जाय! इस विचार का आना था कि लीजिए बन गया ब्लॉग। अब जो भी ब्लॉग पढ़ूँगा कमेंट अच्छा कर पाया तो यहाँ चेप दूँगा। मेरी मेहनत भी जाया नहीं होगी और मैने कब क्या लिखा, वह भी सुरक्षित रहेगा। अपना क्या किसी दूसरे ब्लॉगर का कमेंट अच्छा लगा तो उसको लेकर भी पोस्ट बनाई जा सकती है! इसीलिए ब्लॉग का नाम दे दिया..ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी। क्यों? क्या खयाल है आपका? यह मेरी कल शाम वाली बेवकूफी से बड़ी बेवकूफी तो नहीं ! यदि ऐसा है तो मिटाने की विधि लिखियेगा..मैं सहर्ष मिटा दूँगा। जाते-जाते मेरा वह वाला कमेंट तो पढ़ते जाइये जिसको मैने सुऱक्षित रखने के लिए इतनी मेहनत करी.....:)
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ
इस अहंकार को संतों ने बहुभांति समझाया, सावधान किया, पढ़ते हैं, जानते हैं कि यह है! लेकिन क्षण बदला कि हम सब भूलकर पुनः अहंकारी हो जाते हैं। अहंकार कभी संतुष्टि नहीं देता लोभ को ही जन्म देता है। महाशंख के चक्कर में अपना शंख भी गंवा देता है। कही सुना था जब तक हम 'आ' नहीं कहते 'राम' नहीं मिलता, जब तक राम 'आ' नहीं कहते 'आराम' नहीं मिलता। पूरी जिंदगी गुल़जार के नज्म की तरह उसी मोड़ पर खड़े-खड़े बीत जाती है। मजा यह कि जि़ंदगी और ठहरने के बीच चहलकदमी भी हमेशा होती रहती है!..
पश्चिम की ओर
पूरब ने कहा
आ मेरी ओर
जब मैं चला
पूरब की ओर
पश्चिम ने कहा
आ मेरी ओर
जीवनभर चलता रहा
कभी इधर
कभी उधर
जब चलने की शक्ति न रही
एक किनारे
थककर बैठ गया
मील के पत्थर बताने लगे
मैं तो अभी वहीँ था
जहाँ से चलना शुरू किया था!
.........
यह मील का पत्थर ही हमारे अंहकार को तोड़ पाता है। हाय! हम उसे जीवन भर नहीं पहचान पाते। यह ठीक वैसे ही है जैसे ओशो जैसी महान आत्मा हमारे जीवन काल में हमारे आस पास रहकर करीब से गुजर गई और हम अपने अंहकार के वशीभूत होकर उनमें कमियाँ ही ढूँढते रहे।
इस पोस्ट ने आज का दिन बना दिया..मुझसे जाने क्या-क्या लिखा दिया!
अब तो कमेन्ट भी कविता के रूप में करना होगा क्या?????
ReplyDeleteजिसे सहेजा जा सके :-)
रविकर जी भी तो टिप्पणियों का ब्लॉग बनाए हैं...
शुभकामनाएँ...
(वर्ड वेरिफिकेशन हटा लीजिए.)
अनु
badhiyaaaaaaaaaaaaaaaa
ReplyDeleteहा हा हा बुरे फ़ँसे आप ...अब सहेजने के लिये लिखना भी होगा ...:-)
ReplyDeleteरोचक.....
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.एक बार फिर से बधाई !
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (12-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
धन्यवाद। बस आप जैसे शुभचितंकों की दरकार है।
Deleteहा ह ह ..ओरिजनल और % खरा जोक बधाई हो यु ही दुसरो ब्लाँग पर कमेँट करे और पोस्ट बनाये वैसे मेरी भी इस कमेँट का पोस्ट बना दो तो मैँ भी रोजाना यहाँ कमेँट दिया करुँगा ।
ReplyDeleteपोस्ट बनने के लिए और जोरदार कमेंट करना पड़ेगा। :)
Deleteअगली बार करुँगा अभी मन नही हैँ पर पोस्ट बनाना पडेगा देख लो ...
Deleteउसपर जो मेरा कमेन्ट था वो यहाँ चिपका दे रहा होऊँ.. बधाई के साथ...
ReplyDeleteदेवेद्र भाई!
बिलकुल सही बात कही आपने... जब गौतम, बुद्धत्व को प्राप्त हुए तो लोगों ने उनसे कई बार पूछा कि आपने क्या पाया. और उनका उत्तर था कि जो पाया वो पहले से पाया ही हुआ था. अब आप ही बताइये, सागर में रहने वाली मछली को कोई 'सागर क्या है' इस प्रश्न का उत्तर बता सकता है? अब मछली अगर सागर को ढूँढने निकले तो क्या पायेगी!!
सार्थक अभिव्यक्ति!
हटाएं
बढिया आईडिया और हां ऐसे ही लगे रहो नही तो नाम संतुष्ट आत्मा हो जायेगा हा हा हा
ReplyDeleteताजे ताजे ब्लॉग पर एक कमेन्ट तो हम भी कर देते है. शायद कमेन्ट करने वालो के भी दिन बन जाए.
ReplyDeleteबधाई जी बधाई।
ReplyDeleteबढ़िया है .... वैसे सच ही टिप्पणी में कभी कभी बहुत अच्छा लिख जाते हैं .... अच्छा है कि आप सहेज कर रख लेंगे ....
ReplyDeleteवैसे ब्लॉग डिलीट करना हो तो ---- डैश बोर्ड ---जिस ब्लॉग को डिलीट करना हो उसका डैश बोर्ड ---- सेटिंग्स --- अदर(other )को क्लिक करें ... ऊपर ही ब्लॉग टूल आएगा जिसमें तीन औपशन होते हैं ... लास्ट में लिखा होगा डिलीट ब्लॉग .... :):)
एक और नया ब्लॉग बनाने की बधाई।
ReplyDeleteपुरानी जमाने में राजा लोग जिधर कहीं भी निकल जाते थे एक ठो रानी करके डाल देते थे। लौट के भूल जाते थे। राजकाज में बिजी हो जाते थे। कोई-कोई रानी समझदार होती थी कि निशानी के तौर पर अंगूठी-संगूठी धरा लेती थी और बाद में फ़िर रानी बन जाती थी।
वही हाल ब्लॉगर का है। सब मामला फ़्री है इस लिये जिधर मन आता है एक ठो ब्लॉग बना के डाल देता। भले ही उसको संभाल न पाये।
ब्लॉग निभाना जीवन साथी से निभाने जैसा है। जित्ते जीवन साथी बनेंगे, निभाना मुश्किल होता जायेगा। कुछ लोगों ने तो इत्ते-इत्ते ब्लॉग बना रखे हैं कि अगर उनसे ही पूछा जाये कि कित्ते ब्लॉग हैं तो वे गिना न पायेंगे।
अच्छे कमेंट के लिये एक ठो ब्लॉग बनाया है तो खराब टिप्पणियों ने क्या बिगाड़ा है जी? वे भी आपके दिमाग की उपज हैं। उसका भी एक ठो ब्लॉग बनाइये।
मेरी समझ में ब्लॉगर का एक ही ब्लॉग होता है जिसके साथ उसकी पहचान जुड़ी होती है। हर तरह की कलाकारी एक ही ब्लॉग में होनी चाहिये। देवेंद्र पाण्डेय मतलब बेचैन आत्मा। इसके अलावा ज्यादा इधर-उधर टहलायेंगे तो हम तो भैया यही समझेंगे कि यथा नाम तथा गुण वाले हैं भाईजी।
फ़ोटो ब्लॉग समझ में आता है कुछ-कुछ। जैसे सुनील दीपक जी का है http://chayachitrakar.blogspot.in । बाकी सब में आप कुछ दिन बाद ऊब जाओगे।
जानकारी के लिये बता दें कि सिर्फ़ टिप्पणियों से संबंधित एक ब्लॉग थी http://tippanicharcha.blogspot.in/ कई लोगों द्वारा चलाये जाने के बावजूद उसकी आखिरी पोस्ट आये दो साल से ऊपर गये।
एक बार फ़िर से शुभकामनायें।
आप पोस्ट तो अच्छी-अच्छी लिखते हैं लेकिन कमेंट करने में हमेशा कंजूसी करते हैं। इस बार लिखवा लिया न आपसे जोरदार कमेंट..! मैने कुछ चाहा नहीं सब अनायास हो गया है..बस आपकी कृपा दृष्टि चाहिए..दोनो ब्लॉग ऐसे हैं जो मेरे शौक से जुड़े हैं। फोटू खींचना और कमेंट करना। कभी अच्छी फोटू खींची तो चिपका दूँगा..कभी अच्छा कमेंट किया या कहीं देखा तो यहाँ लगा दूँगा..चलता रहेगा जी!..यह हो सकता है कि कमेंट के लाले पड़ जांय।
Deleteनए ब्लॉग के लिए बधाई और शुभकामनाएँ !!
ReplyDeleteकोई अच्छी कविता लिख पाई तो कमेन्ट में डाल दूँगीः)
mae to apni tippaniyaan bahut pehlae sae apne blog bina laag lapet par sehaj raheii hun
ReplyDeleteaap ne bhi shuru kiyaa achchha lagaa
हाँ..ध्यान आया। सही तो है..कोई ब्लॉग चले न चले यह तो चलेगा ही। :)
Deleteबहुत अच्छा प्रयास है आपका. कभी - कभी अनायास ही इतनी अच्छी टिप्पणी हो जाती है, कि उसे सहेजने और बार-बार पढने का मन करता है, यहाँ तो सब कमेंट की ही छाया- माया है... शुभकामनायें
ReplyDeleteबना तो हम भी रखे हैं , मगर दो मुख्य ब्लॉग ही पूरी तरह अपडेट नहीं हो पाते ...
ReplyDeleteबधाई !
ये भी बढिया आइडिया है ……………
ReplyDeleteजो जो राह मे मिलता रहे
सबको गले लगाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो
बस ऐसे ही ब्लोग बनाते चलो
:)
Deleteअनायास बनी हुयी चीजें हमेशा अच्छी होती हैं ... कभी कभी अनायास बनी कविता भी ...
ReplyDeleteआपने तो पूरी पोस्ट ही नहीं पूरा ब्लॉग ही बना दिया एक टिप्पणी को ले के ... लगता है अब आगे से टिप्पणी करते हुवे भी सोचना पड़ेगा ... कहीं लपेटे न जाएं ....
मुझे तो यह विचार नहीं जंचा.
ReplyDelete
ReplyDeleteइस पोस्ट ने आज का दिन बना दिया..मुझसे जाने क्या-क्या लिखा दिया!
दीवाना हमें भी बना दिया .
ले बिल्लैया , बहुते कमाल धमाल है जी । बहुत पहले हमें भी जे आइडिया भाई नीरज बधवार ने दिया था , अपन ठहरे निकम्मे सो इसके बदले काम ये कि सबकी मजेदार टिप्पणियों को सहेजने के लिए एक ठो अलग से टिप्पणियों को सहेजने का ब्लॉग ही बना दिया ।अर्सा हो गया उस पर धमाचौकडी लगाए हुए अब आपने उकसाया है तो उसे भी धप्प से शुरू करते हैं
ReplyDeleteब्लॉग का लिंक दीजिए ताकि मार्गदर्शन मिल सके।
Deleteहरकत में बरकत है जी, जो किया अच्छा किया.
ReplyDeleteजब भी होश आ जाय वही समय ठीक होता है,सवाल सिर्फ जागने का है.मृत्यु से पहले यदि जाग लिया तो सबकुछ पा लिया,अगर नहीं तो जिंदगी बेकार के आपा-धापी में गुजर गयी .सवाल सिर्फ मन के शांत हो जाने और १०० % वर्तमान में होनेका है,कितनी उम्र गंवाने के बाद कोई इस स्थिति में आता है ,उससे कोई फर्क नहीं पडता.
ReplyDeleteअनूप शुक्ल जी की बातों से सहमत हूँ। ब्लाग बन तो जाते है पर संभलते नहीं..... फिर भी आप इसे संभाल सके इसके लिए शुभकामनाएं...
ReplyDeleteअच्छा प्रयास है आपका...पाण्डेय जी
ReplyDeleteनए ब्लॉग के लिए बधाई और शुभकामनाएँ !!